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( २१ ) १४. जावंति चेइयाइं सुत्तं । जावंति चेइयाई -जितने चैत्य और उनमें जिनबिम्ब उड्ढे अ अहे अ तिरियलोए अ--ऊर्ध्वलोक, अधोलोक
और तिरछालोक में हैं सव्वाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई।--वहाँ रहे
हुए उन सब चैत्यों एवं प्रतिमाओं को
यहाँ रहा हुआ मैं वन्दन करता हूँ॥१॥
१५. जावंत के वि साहसुत्।। जावंत के वि साहू--जितने कोई भी साधु भरहेरवयमहाविदेहे अ--पांच भरत, पांच ऐरवत और
पांच महाविदेह, इन १५ क्षेत्रों में हैं सव्वेसिं तेसिं पणओ--उन सभी साधुओं को मैं
नमस्कार करता हूँ, जो तिविहेण तिदंडविरयाणं ।--त्रिविध ( करन, कारापन
और अनुमोदन रूप ) योग से तथा मन, वचन, काया रूप तीन दंडों से निवृत्त ( अलग ) हुए हैं ॥१॥
१६. पञ्चपरमेष्ठिनमस्कारसूत्रम् । नमोऽहत्-सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः--अरिहन्त,
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