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(२५) तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं-- __ तो भी आपके चरणों की सेवा भवोभव में
मेरे को प्राप्त हो, मिले ॥३॥ दुक्खखओ कम्मक्खओ-दुःखों का नाश, कर्मों
का क्षय, . समाहिमरणं च बोहिलाभो अ--समभाव रूप समाधि
मरण और सम्यकत्व का लाभ, संपज्जउ मह एअं, तुह नाह पणामकरणेणं--हे नाथ !
आपको वन्दन करने से ये सब मेरे को
प्राप्त हो ॥४॥ सर्वमंगलमाङ्गल्यं--सर्वमंगलो में प्रथम मांगलिक । सर्वकल्याणकारणम्।--समस्त कल्याणों का कारण, निमित्त प्रधानं सर्वधर्माणां--और सर्व धर्मों में श्रेष्ठतम जैनं जयति शासनम् --जैन शासन जयवन्ता वर्तों ॥५॥
१९. अरिहंतचेइयाणं सुत्तं । अरिहंतचेइयाणं करेमि काउसग्गं-- अरिहन्त भग
वन्तों के वन्दनादि के निमित्त कायोत्सर्ग
करता हूँ. वंदणवत्तिआए-चन्दन से होते हुए फल के निमित्त, पूअणवत्तिआए-पूजा से मिलनेवाले फल के निमित्त,
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