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( २६ ) सक्कारवत्तिआए-वस्त्राभूषणादि सत्कार से प्राप्त फल
के निमित्त, सम्माणवत्तिआए-स्तवन, स्तुति, स्तोत्रादि से सन्मान
करने के निमित्त, बोहिलाभवत्तिआए–सम्यक्त्व की प्राप्ति के निमित्त, निरुवसग्गवत्तिआए-उपसर्ग रहित मोक्षस्थान की प्राप्ति
करने के निमित्त, सद्धाए मेहाए धिईए-अटूट श्रद्धा से, निर्मल बुद्धि से
और चित्त की स्थिरता से, धारणाए अणुप्पेहाए-स्मृति से, वार वार तत्व की
विचारणा से, और । वढमाणीए-बढती हुई शुभ भावना से, ठामि काउसग्गं ।---मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।
२०. कल्लाणकंदं थुई। कल्लाणकंदं पढमं जिणिदं-कल्याण के मूल कारण
प्रथम जिनेश्वर श्री ऋषभदेवस्वामी को, संतिं तओ नेमिजिणं मुर्णिदं-श्री शन्तिनाथ प्रभु
को, तथा मुनिवरों के इन्द्र श्री नेमिनाथ
प्रभु को, पासं पयास सुगुणिक्कठाणं-तीनभुवन में प्रकाश कर
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