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- (१८) १३. नमो स्थु णं (शक्रस्तव) सुत्तं । नमो स्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं ।--नमस्कार हो
अरिहन्त भगवन्तों को। आइगराणं-वे धर्म की आदि के करनेवाले तित्थयराणं--तीर्थ(संघ) की स्थापना करनेवाले और सयंसंबुद्धाणं ।- स्वयं बोध को पाये हुए हैं, पुरिसुत्तमाणं--पुरुषों में उत्तम हैं पुरिससीहाणं--पुरुषों में सिंह के समान निर्भय हैं, पुरिसवरपुंडरीआणं--पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीककमल के
समान निलेप हैं, पुरिसवरगंधहस्थीणं ।--पुरुषों में गन्धहस्ती के समान
सहनशील या कर्मरूप वैरियों को हठाने में
बडे पराक्रमी हैं, लोगुत्तमाणं--लोगों में उत्तम हैं, लोगनाहाणं--लोगों के नाथ हैं, लोगहियाणं--लोगों का निःस्वार्थ हित करनेवाले हैं लोगपईवाणं--लोगों में ज्ञान से दीपक के समान प्रकाश
करनेवाले हैं लोगपज्जोअगराणं ।--लोक में ज्ञान से सूर्य के समान
मिथ्यान्धकार का नाश करके प्रकाश करनेवाले हैं.
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