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(१३)
एएण कारणेणं,--इस कारण बहुसो सामाइयं कुज्जा । --अनेक वार (वारंवार) सामा
यिक करना चाहिये ॥२॥ सामायिक विधे लीg-~सामायिक व्रत विधि से लिया विधे पाल्यु--विधि से पालन किया विधि करतां जे कोई अविधि हुई-विधि करते हुए जो
कुछ अविधि की हो ते सवि हुं मन वचन कायाए करी--उस सब अविधि
___ की क्रिया का मन, वचन और काया से मिच्छा मि दुक्कडं-मिथ्या दुष्कृत देता हूँ अर्थात्-उस
अविधिजन्य क्रिया को निष्फल मानता हूँ।
११. जगचिंतामणि-चैत्यवन्दनकसुत्तं ।
इच्छाकारेण--आप अपनी इच्छा से संदिसह भगवन् !- हे भगवन् ! आज्ञा दीजिये चैत्यवंदन करूं?--चैत्य वन्दन करता हूँ इच्छं--आप की आज्ञा प्रमाण है। जगचिंतामणि !, जगनाह !-जगत् में चिन्तामणि रत्न
. के समान, जगत् के स्वामी.
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