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(१२) न करेमि, न कारवेमि। -खुद पाप व्यापार को नहीं करूं
और दूसरों से नहीं कराऊँ तस्स भंते ! पडिक्कमामि--हे भगवन् ! उस पहले किये
हुए पापकर्म से निवृत्त होता हूँ निंदामि, गरिहामि--आत्मसाक्षी से उस पाप की निन्दा
और गुरुदेव की साक्षी से उस पाप की
विशेष निन्दा करता हूँ अप्पाणं वोसिरामि--इस प्रकार मैं उस पापक्रिया से
अपनी आत्मा को अलग करता हूँ। १०. सामायिक पारने का सूत्र । सामाइयवयजुत्तो,--सामायिक व्रत सहित जाव मणे होइ नियमसंजुत्तो।--जहाँ तक समताभाव
में वरतूं वहाँ तक छिन्नइ असुहं कम्मं,--अशुभ पापकर्म का नाश होता है सामाइय जत्तिया वारा। --जितनी वार सामायिक करे
उतनी वार कर्म से मुक्त होता है ॥१॥ सामाइयंमि उ कए,-सामायिक व्रत में रहा हुआ समणो इव सावओ हवइ जम्हा ।--श्रावक साधु के
समान होता है-माना जाता है ॥१॥ .
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