________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१४)
जगगुरू! जगरक्खण !-जगत् के गुरु, जगत्वासी
प्राणियों की रक्षा करनेवाले जगबंधव ! जगसत्थवाह !--जगत् में भाई के समान,
हितैषी, जगत् के सार्थवाह अर्थात् नेता
अगुआ जगभावविअक्षण--जगत् के · चराचर पदार्थों को
जानने और कहने में विचक्षण अट्ठावय-संठवियरूव--अष्टापद पर्वत के ऊपर प्रतिमा
रूप से स्थापित कम्मट्ठविणासण--आठ कर्मों का सर्वनाश करनेवाले चउवीसं पि जिणवर जयंतु-चोवीसों तीर्थङ्कर भगवान्
__ जयवन्ता वर्तों अर्थात्-जिनेश्वरों की जय हो अप्पडिहयसासण--जिनकी आज्ञा और उपदेश अस्ख
लित एवं बाधा रहित है ॥१॥ कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं--जिसमें असि, मसि और
कृषी रूप तीन कर्म प्रवर्तित हैं उन कर्म
भूमियों में पढमसंघयणि--प्रथम 'वज्रऋषभनाराच' नामक संघ
यणवाले उक्कोसयसत्तरिसय---उत्कृष्टकाल में एकसो सित्तर
For Private And Personal Use Only