________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१०) स्वामी और नमिनाथ प्रभु को मैं वन्दन
करता हूँ। चंदामि रिट्टनेमि,--अरिष्टनेमि प्रभु जिनका दूसरा नाम
नेमिनाथ भी है उनको वन्दन करता हूँ, पास तह वद्धमाणं च । --श्रीपार्श्वनाथ तथा वर्द्धमानस्वामी
(महावीर) को वन्दन करता हूँ ॥४॥ एवं मए अभिथुआ,--इस प्रकार मैंने स्तवना की, विहुयरयमला पहीणजरमरणा। --कर्मरूप रज के मैल
से और बुढापा तथा मरण से रहित । चउवीसं पि जिणवरा,--चौवीसों ही जिनवर सामान्य
केवलज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं, तित्थयरा मे पसीयंतु । --ये तीर्थङ्कर भगवान मेरे ऊपर
प्रसन्न हो ॥५॥ कित्तियवन्दियमहिया,--ये प्रभु कीर्तन किये गये, वन्दन
किये गये और पूजन किये गये हैं। जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा । --जो ये तीर्थंकर तीनों
लोक में उत्तम हैं और ये सिद्ध हुए हैं और
मोक्ष में विराजमान हैं। आरुग्गबोहिलाभ,--ये भगवान् मुझ को आरोग्यता,
बोधिलाभ ( सम्यक्त्वरत्न )
For Private And Personal Use Only