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चारित्र्य सुवास
जबतक तुम ऐसा नहीं करोगे तबतक तुम्हारे औटे पर भूखा बैठा रहूँगा ।
आखिर व्यापारीको मानना पड़ा। उसने अपनी तराजू उठायी और आकाशकी ओर देखकर कहा : 'यदि इस तराजूसे मैंने किसीको कभी भी कम-बढ़ती तौलकर न दिया हो, नीतिका ही सेवन किया हो, सत्यका ही आचरण किया हो तो हे देवताओ ! तुम अनुग्रह करना ।'
अभी तो व्यापारीने अपनी प्रार्थना पूरी की, इतनेमें तो आकाश धीरे-धीरे बादलोंसे घिरने लगा । ठण्डी हवा बही और वर्षा होने लगी ।
सत्य और प्रामाणिकताका ऐसा प्रभाव देखकर राजा और समस्त प्रजाजन अत्यन्त प्रसन्न हुए और उस व्यापारीकी कीर्ति राज्यसभा में फैल गयी ।
परमात्मा भी प्रामाणिकताके आधीन हैं ।
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परमपदप्राप्तिका रसायन
आजसे लगभग १८०० वर्ष पूर्व मिस्र देशमें हुए महान सन्त अॅन्थोनीके जीवनकी यह घटना है। उस समयके प्रथम पंक्तिके महात्माओंमें उनकी गिनती होती थी और उनकी ख्यातिकी सुगन्ध आसपासमें सैंकड़ो मीलोंतक फैली हुई थी ।
एक समय भक्तोंके आग्रहको सम्मान देकर वे अॅलेक्झान्ड्रिया पधारे थे। धर्मका महोत्सव पूर्ण होने पर अपने मूल स्थान,
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