Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 68
________________ चारित्र्य-सुवास भिक्षा लाया हूँ वह बनाओ और खाओ।' ऐसे हृदयकी गहराईमेंसे निकले प्रेमपूर्ण वचन सुनकर उस ब्राह्मण बाईकी आँखोमेंसे टपाटप आँसू बहने लगे। जव ब्राह्मणबाईको ज्ञात हुआ कि यह बालक तो प्रसिद्ध भक्तराज श्री चैतन्यदेव हैं तब उसके आनन्दका पार नहीं रहा। सन्तोंके जीवनमें परोपकार, परदुःखनिवारकता और जगतके सभी जीवोंके प्रति आत्मीयताका व्यवहार सहजरूपसे गुंथ गये होते हैं। ४७ मंत्रीका स्पष्टवक्तापन __ अपने राज्यमें अहिंसा धर्मका दृढ़तासे पालन करानेवाले महाराजा कुमारपालका नाम इतिहासमें प्रसिद्ध है। उनके राज्यमें अनेक चतुर मंत्री और सुभट सेनापति थे। एक समय राजदरबारमें उन्होंने अपने एक अनुभवी और वृद्ध मंत्री श्री आलिगको पूछा, 'मंत्रीजी, मैं गुणसम्पत्ति आदिमें जयसिंह-सिद्धराजसे हीन हूँ, समान हूँ कि अधिक हूँ ?' __मंत्रीने कहा, 'महाराज ! जयसिंह-सिद्धराजमें तो अट्ठानवे गुण थे और दो ही दोष थे, जब कि आपमें तो दो ही गुण हैं और अट्ठानवे दोष हैं।' । राजाने जब अपने ही मंत्री द्वारा अपना दोषयुक्त जीवन जाना तब उन्होंने ऐसे दोषपूर्ण जीवनकी अपेक्षा मृत्युको पसंद करनेकी इच्छा व्यक्त की। मंत्री चतुर थे। उन्होंने तुरंत राजासे कि आपमें अट्ठानवे जाना राजाने जब अपने दोष हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106