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चारित्र्य-सुवास हुए। अव गांधीजीने नया उपचार अजमानेको कस्तूरबासे कहा, 'तुम्हें रक्तस्राव अटकानेके लिए दलहन और नमक छोड़ना पड़ेगा।'
'कवतक ?'. ... 'स्वस्थ होओ तबतक, अथवा सदाके लिए।
'यह मुझसे नहीं होगा, ऐसा यदि मैं आपसे कहूँ तो आप भी न छोड़ें।
तभी आनन्दित होकर गांधीजी बोले, "तू छोड़े या न छोड़े यह वात अलग है परन्तु मैंने तो दोनों वस्तुएँ आजसे छोड़ दी !'
गांधीजीके स्वभावको जाननेवाली पली चिल्लायी, 'मुझे क्षमा करें, आप अपना वचन वापस लें, मैं ये दोनों वस्तुएँ छोड़ती हूँ।' .. प्रसंग तो छोटा है, परन्तु सभीको जीवनमें याद रखने योग्य है। उपदेश देनेसे पहले आचरण पर ध्यान देना चाहिए। चारित्रका प्रभाव पड़ता है, बातोंका नहीं। गांधी बापू और कस्तूरबा बादमें भारतके करोड़ों मनुष्योंके हृदयमें छा गये, इसके पीछे संस्कार और आचरणका साधा हुआ सुभग मिलाप,
और उसके द्वारा उनके जीवनमेंसे निकलती सुवास ही कारणभूत रहे।
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