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चारित्र्य-सुवास घण्टोंमें वह प्रबन्ध करके वापस लौटूंगा।' पहले तो पहरेदार माना नहीं परन्तु जब विचारा कि 'जिसने अपना नाम सही बताया है वह अवश्य वापस आयेगा।' ऐसा सोचकर उसने रघुपतिसिंहको जानेकी अनुमति दी।
इस ओर रघुपतिसिंहने दवा आदिका पूरा प्रबन्ध करके दूसरे दिन जानेकी तैयारी की तब पत्नीने उसे रोका, किन्तु उसे समझाकर वह तो चल निकला।
रघुपतिसिंहको आया हुआ देखकर पहरेदारने पूछा, 'तुझे मौतका डर नहीं लगता ?' रघुपतिसिंहने कहा, 'चाहे कुछ भी हो परन्तु दिया हुआ वचन पालना धर्म है। मौतकी अपेक्षा मैं विश्वासघातसे अधिक डरता हूँ।' ___ यह सुनकर पहरेदार चकित हुआ। इस वीर, दृढ़ संकल्पी और देशभक्तको देखकर, उसे मुक्त करते हुए वह बोला, 'धन्य है तुम्हारे जैसे दृढ़ संकल्पी और सत्यप्रिय पुरुषको । मैं भी तुम्हारे जैसा बननेका प्रयल करूँगा।
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चारित्र्य-सुवास
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ईस्वी सन् १९१२के अरसे में जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीकाके जोहानिसबर्गमें रहकर भारतीय समाज-सम्बन्धी व्यवस्थाका कामकाज करते थे उस समयकी यह बात है। ___बात ऐसी थी कि डरबनमें कस्तूरबा अत्यन्त गम्भीर बीमारीमें एक डॉक्टर-मित्रके यहाँ रहकर उपचार कराती थीं। एक दिन डॉक्टरने गांधीजीको तार करके कहा, 'आप तुरन्त
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