Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 69
________________ चारित्र्य-सुवास कहा, 'महाराज ! सिद्धराजमें जो अट्ठानवे गुण थे वे उनके दो महान दुर्गुणोंमें बिलकुल छिप जाते हैं - समरांगणमें कायरता और स्त्रीलम्पटता। जबकि आपमें जो कृपणता-लोभीपन आदि दोष हैं वे सब आपके दो अति महान गुणोंमें कहीं छिप जाते हैं - समरांगणमें शूरवीरता और परस्त्रीमें सहोदरापनेकी उच्च भावना। यह सुनकर राजा कुमारपाल स्वस्थ हुए और अनुभवी मंत्रीके स्पष्ट, परन्तु न्यायोचित अभिप्रायकी प्रशंसा की एवं अपनी भूल सुधारनेका दृढ़ संकल्प किया। ४८ 'सुना पर गुना नहीं' -- - वर्तमानमें जो शिक्षा अपनेको मिलती है वह अपने जीवन-विकासमें कहाँ तक सहायक है और व्यावहारिक जीवनकी अनेक समस्याओंके समाधान में कितनी उपकारी है यह विचारणीय है। वर्तमान शिक्षाने अपने ऐसे प्रयोजनकी अधिकांशरूपमें सिद्धि नहीं की है। इसी बातको दर्शाते हुए शिक्षितोंके निम्नलिखित दो प्रसंग रसप्रद और वोधक हैं : (१) एक, बी.ए. तक पढ़े हुए शिक्षकको आभूपण वनवानेके लिए सुनारके पास जाना पड़ा। सोनेका तोल करते समय दुअन्नीकी आवश्यकता हुई । सुनारके पास वह नहीं भी। सुनारने शिक्षक बन्धुसे कहा कि तुम्हारे पास दुअन्नी अं तो दो। शिक्षकके पास खुली दुअन्नी नहीं थी इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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