Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 71
________________ ५८ चारित्र्य-सुवास एक दिन तुकाराम कुछ गन्ने लेकर घर आ रहे थे। मार्गमें गरीब आदमी और उनके छोटे बच्चे सामने मिले। उन्होंने दयाभावसे प्रेरित होकर गन्ने गरीबोंको बाँटने शुरु कर दिये। अन्तमें एक ही गन्ना तुकारामके पास बचा, जो उन्होंने घर जाकर पलीको दिया। पलीको पता चल गया कि.. तुकारामने रास्तेमें बहुत-से गन्ने गरीवोंको दे दिये हैं, इसलिए क्रोधमें आकर गन्ना तुकारामकी पीठमें मारा। गन्नेके दो टुकड़े हो गये। ज़रा-सा भी गुस्सा किये बिना तुकाराम हँसते मुँह बोले, 'वाह ! तू बहुत ही समझदार स्त्री है। तुझे मुझपर कितना अधिक प्रेम है ! एक गन्ने जैसी वस्तु भी तुझे अकेले खाना अच्छा नहीं लगा, इसीलिए अपने दोनोंके लिए भाग कर दिये। वाह, तेरी क्या समझदारी है !' ऐसे वचन सुनकर स्त्रीको बहुत ही पश्चात्ताप हुआ और उसने पतिसे क्षमा माँगी। अभूतपूर्व स्वाभीभक्ति - ___ बारहवीं शताब्दीके उत्तरार्द्धमें उत्तर भारतमें सम्राट पृथ्वीराजका शासन प्रवर्तमान था। एक बार किसी बड़े युद्धमें स्वयं सम्राट और उनके अनेक सामन्त एवं अंगरक्षक बहुत ही बुरी तरह घायल हो गये थे। सम्राट स्वयं लगभग बेसुध थे। रणक्षेत्रमें मृत्युको प्राप्त हुए अनेक सैनिकोंके शवोंको खानेके लिए गिद्ध आकाशमें Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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