Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 94
________________ चारित्र्य-सुवास ये महापुरुष थे भारतमें 'दादा'के नामसे प्रसिद्ध श्री दादाभाई नवरोजी। उपरोक्त प्रसंग, उनके बम्बईमें मनाये गये ८६वें जन्मजयन्ती-समारोहके अवसरका है। संसारसुख और पुण्य - राजा सिद्धराज जयसिंह अपने शयनखण्डमें सो रहे थे और दो सेवक उनके पैर दबा रहे थे। राजाको निद्राधीन जानकर पहले सेवकने कहा, 'अपने राजाकी उदारता, उत्तम प्रजावात्सल्य, विद्वानों-कलाकारोंका सम्मान आदि राजोचित अनेक गुण वास्तवमें प्रशंसनीय हैं।' दूसरे सेवकने कहा, 'उनके सैन्यकी शक्ति, कठोर राज्यपालन और चतुराई द्वारा ही वे विशाल राज्यके स्वामी बने हैं।' इसप्रकार दोनोंने राजाकी प्रशंसा की इस बातका राजाको ध्यान था। राजाके कार्योंकी प्रशंसा करनेवाले दूसरे सेवकको अलगसे बुलाकर, उसे कुछ भी कहे बिना राजाने एक लेख दिया और वह लेख महामंत्री सान्तूको पहुँचानेकी आज्ञा दी। यह सेवक राज्यका लेख लेकर राजप्रासादकी सीढ़याँ उतर रहा था इतनेमें ही उसका पैर फिसला. और नीचे गिरनेसे उसके पैरोंमें भारी चोट आयी कि जिससे वह चल नहीं सका। इस ओर तभी, उसका साथी सेवक वहाँ आ पहुँचा और उसने पूछा, 'क्यों भाई, क्या हुआ ?' सेवकने कहा, मेरे पैरमें चोट लगी है, तो महाराजका यह संदेश तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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