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चारित्र्य-सुवास सोये है और नौकर पलंगपर सोया है ?' श्री ताराकान्तजीने रातको अपने देरसे आनेकी और उस समय थकानके कारण नौकरके पलंगपर सो जानेकी बात कही। नौकरकी निद्रा और आरामका भंग न हो इसी हेतुसे. स्वयंने नीचे सो जानेका विचार किया था।
__सारी बात सुनकर, श्री ताराकान्तके मनमें नौकरोंके प्रति इतनी भारी सहदयता है यह जब राजाको ज्ञात हुआ तब उनके आनन्द और आश्चर्यका पार नहीं रहा।
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सोनेके सिक्कोंकी अस्वीकृति
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सन्त मथुरदासजी गंगाके किनारे अपनी कुटीरमें भगवद्भक्तिमें लीन रहते थे। - एक दिन एक बड़ा सिन्धी व्यापारी उनके पास आया और सोनेके सिक्कोंकी एक थैली उनके समक्ष भेंटस्वरूप रखकर कहा, 'प्रभु ! मुझे आशीर्वाद दीजिए, जिससे मैं सदा सुखी रहूँ।' - सन्तने कहा, 'भाई ! तू पहले अपनी यह थैली वापस
ले ले फिर बात करूँ।' किन्तु वह व्यापारी तो माना ही नहीं। सन्तने कहा, 'मेरी एक बातका उत्तर दे : तेरी पुत्रीका लग्नप्रसंग हो और बरातको भोजनके लिए बिठानेकी तैयारी हो, ऐसे समयपर जो कोई तेरे रसोईघरमें जाकर तैयार भोजनमें धूल डाल दे तो तू क्या करे ?'
__'महाराज ! तब तो मैं डण्डे लगाकर उसके मूर्खतापूर्ण कार्यकी पूरी सजा हूँ।'
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