________________
चारित्र्य-सुवास जनरल स्तब्ध हो गये।
ये न्यायाधीश महोदय थे बंगाल विश्वविद्यालयके वाइस-चान्सलर श्रीयुत आशुतोष मुकर्जी।
७४
सन्त-वचनका प्रभाव
नाया कि जिनमें महाराज श्रीमन्त और पधारे
शाकम्भरी नगरीमें धनाशाह नामक श्रावक रहते थे। नाम धनाशाह परन्तु धनका तो नामनिशान नहीं। उनकी स्त्री चरखा कातती, धागे बनाती और धनाशाह उसका कपड़ा बनवाकर बेचता। इसप्रकार उनका निर्वाह होता था | एक बार धनाशाहने अपने लिए ही सूत कतवाकर उसका एक "पिछौरा बुनवाया कि जिससे सर्दीमें ओढ़नेके काम आवे।
एक दिन शाकम्भरी नगरीमें महाराजा कुमारपालके गुरु श्री हेमचन्द्राचार्य पधारे। उनके मन तो श्रीमन्त और रंक सब समान थे। ऐसे महान आचार्यको अपने यहाँ पधारे देखकर धनाशाहको अत्यन्त उल्लास-भाव आया, इसलिए उसने उन्हें योग्य आहार दिया और वह पिछौरा भी भिक्षामें दे दिया। श्री हेमचन्द्राचार्यने उसका स्वीकार किया।
कुछ दिनोमें श्री हेमचन्द्राचार्य पाटण पधारे। वहाँ उनका भव्य स्वागत हुआ। स्वागत-समारोहमें महाराजा स्वयं भी सम्मिलित थे। श्री हेमचन्द्राचार्यका पिछौरा देखकर राजाने कहा, "भगवन् ! आप तो मेरे गुरु गिने जाते हैं। आप ऐसे मोटे पिछौरे-जैसे कपड़े पहनें , यह देखकर मुझे लज्जा आती है।' हेमचन्द्राचार्यने उत्तर दिया, 'तुम
- मोटी पछेड़ी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org