Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 96
________________ चारित्र्य सुवास ८३ पत्थर महाराजाके सिरमें लगनेसे बड़ा गुंबा हो गया। दीवान तो क्रोधावेशमें आये और आज्ञा की कि 'इस झोंपड़ी में जो भी रहता हो उसे राजसभामें उपस्थित किया जाय ।' इस ओर, राजाने धीरजपूर्वक कार्यक्रम आगे बढ़ानेको कहा। शमीपूजनका काम पूर्ण होनेपर सभी जगह प्रसाद बाँटा गया और लोग अपने-अपने घर गये । दूसरे दिन भीलके उस छोटे बालकको राजदरबारमें उपस्थित किया गया। उसकी माँ भी साथमें थी । वह काँपती- काँपती बोली, 'अन्नदाता ! मेरे पुत्रने तो कैथ गिरानेके लिए पत्थर फेंका था, कारण कि हम ग़रीबको और कुछ नहीं तो रोटके साथ कैथ हो तो भी पेट भर जाता है और दिन निकल जाता है !' + राजाने दीवानसे पूछा, 'दीवानजी, बालककी माताकी वात तो सच लगती है, अब रही दण्डकी बात । यदि वृक्षको पत्थर लगनेसे इस ग़रीब बालकको कैथ मिल सकता है तो मुझे पत्थर लगनेसे इस बालकको क्या मिलना चाहिए ? अधिक या कम ?" इसप्रकार महाराजाने दीवान और राजसभासदोंके सामने अपनी वात प्रस्तुत की। यह बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गये। महाराजाको सभामेंसे कोई उत्तर नहीं मिला, तब उन्होंने उस बालकसे कहा, 'भाई, तुझसे स्वयं लिये जाँये उतने रोकड़ा रुपये राजभण्डारमेंसे ले जा ।' भीलक वह बालक एवं उसकी माता अत्यन्त प्रसन्न हुए और 'दण्ड' लेकर अपने घर गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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