Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 93
________________ το सत्यनिष्ठा ! कहाँ आजके पोथा - पण्डित विद्वान !! देखो ! धर्मात्मा विद्वानकी और कहाँ ये सच्चे ये विद्वान और कोई नहीं परन्तु वर्तमान शताब्दीके आरम्भमें हुए जैनसमाजके महापण्डित श्रीमान् गोपालदासजी बरैया | * ७० चारित्र्य-: सात्त्विकताका फल गत शताब्दीमें हुए अपने देशके राष्ट्रीयस्तरके एक नेताकी यह बात है । वे बड़ी अवस्था तक खूब स्फूर्तिवाले रहे और प्रत्येक कार्य बहुत सँभालकर प्रसन्नतापूर्वक करते थे । यह देखकर कितने ही युवानोंने उनसे कहा 'आप इस वयमें भी इतने सुंदर ढंगसे काम कर सकते हैं, इसपरसे हमें लगता है कि आपने शरीरस्वास्थ्य-रक्षाकी कोई विशेष युक्ति अपनायी है। क्या आप हमें वह युक्ति नहीं बतायेंगे ?" दादाजी बोले, 'भाइयो ! यह उपाय बिलकुल सीधा-सादा है। मेरे दीर्घायुष्य और स्फूर्तिका रहस्य यह है कि मैं कभी मांस नहीं खाता, शराब नहीं पीता, तम्बाकू-सिगरेटका व्यसन नहीं रखता तथा भोजनमें चटपटी चटनी या अचार आदि नहीं लेता एवं तमोगुणको प्रेरित करनेवाली संगतिमें नहीं पड़ता ।' 4- सुवास Jain Education International यह सुनकर युवान स्तब्ध रह गये । मन-ही-मन दादाजीकी प्रशंसा करने लगे और अनेक विचारशील युवकोंने वैसा ही जीवन जीनेका निश्चय किया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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