Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ चारित्र्य सुवास ७८ शीघ्रता करके आये तो सही, किन्तु बालकके पास पहुँचनेके दो-चार मिनट पूर्व ही बालककी आत्मा चली गयी थी। माँ, हृदयद्रावक करुण कल्पान्त कर रही थी । यह स्थिति देखकर डॉक्टर वापस जाने लगे, बालकका पिता पड़ौसीके यहाँसे पच्चीस रुपये ले आया और डॉक्टरकी फीस देने लगा। डॉक्टरका हृदय द्रवित हो उठा। भीषण ग़रीबी, एकमात्र पुत्रके शवके सामने कल्पान्त करती हुई पत्नी, फिर भी स्वस्थतापूर्वक कर्तव्यपालनका उच्च आदर्श ! डॉक्टर मनसे धन्यवाद देकर फीसको अस्वीकार करते हुए एकदम घरसे बाहर निकल गये और जिस रिक्षामें शीघ्रतासे आये थे उसीमें बैठकर दवाखानेकी ओर रवाना हो गये । दवाखानेपर पहुँचकर तीन रुपये रिक्षावालेको रिक्षावालेने कहा साहब ! आपने पच्चीस नहीं लिये तीन क्यों न जाने दूँ ? डॉक्टरने कहा भाई ! और प्रकारका है, अपना किराया ले ले । रिक्षावालेने किराया लिये बिना रिक्षा हाँक दी । इस ओर, डॉक्टरने जो पच्चीस रुपये नहीं लिये थे वे वापस देनेके लिए बालकका पिता पड़ौसीके यहाँ गया और कहा, साहब, डॉक्टरने फीस नहीं ली इसलिए आपसे उधार लिये हुए पैसे वापस ले लीजिए । पड़ौसीने कहा, मैंने तो तुम्हें पैसे दे दिये, अब वे तुम्हारे ही हैं, बालककी उत्तरक्रियामें उसका उपयोग हो सकेगा। बालकके पिताने बहुत कहा परन्तु पड़ौसीने पैसे वापस नहीं लिये और कर्तव्यकी दृष्टिसे उनके घर जाकर कामकाजमें सहयोग देने लगे। Jain Education International दिये । तो मैं तेरा काम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106