Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 89
________________ जीभकी पवित्रता एक साधक अपने जीवनमें विविध सद्गुणोंका विकास करनेमें प्रयत्नशील था, उसमें उसने 'क्षमा' गुणकी साधना तीन-चार मास तक चालू रखी । इस अवधि के अन्तमें वह एक महापुरुषके पास गया और उनसे कहा कि, 'मेरी क्षमाकी साधना भली प्रकार हो गयी है ।' महापुरुषने कहा, 'तुझे इसका पता कैसे चला ?' साधकने उत्तर दिया, 'साहब, आप मुझे कितनी भी गालियाँ देकर मेरा अपमान कर देखें, मुझे क्रोध नहीं आयेगा ।' महापुरुषने कहा, 'भाई, इसका पता तो किसी अन्य प्रसंगपर चलेगा कि क्षमाकी कैसी साधना हुई है। इस समय केवल इसी कारणसे मैं अनेक अपशब्द वोलकर अपनी जीभकी पवित्रता क्यों विगाहूँ ?' ये महापुरुष अन्य कोई नहीं अपितु बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके प्रणेता, अर्वाचीन भारतके एक महान शिल्पी, महामना पण्डित श्री मदनमोहन मालवीय थे। ६६ ६७ महान वरदान एक सुदृढ़ युवान- भिखारी एक बड़े आदमीके पास जाकर कहने लगा, 'साहब, मुझ गरीबपर दया करके कुछ दो ।' साहबने पूछा, 'भाई, तेरे पास क्या क्या है ?' भिखारीके पास दो पतीली और एक गुदड़ी थी सो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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