Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 82
________________ चारित्र्य-सुवास नियुक्त सेवकों, थानेदारों तथा अन्य बहुतोंने उस बाईको समझाया। 'महाराजा नाराज़ होंगे, हमारा कुछ चलनेवाला नहीं है' आदि युक्तिपूर्वक अनेक बातें कहीं। तब बाईने कहा 'जाओ, महाराजासे कहना कि एक ब्राह्मणकी लड़कीने यह काम होनेसे रोक दिया है।' वे जो सज़ा देंगे वह मुझे मान्य है। आखिर अपनी बाजी नहीं चलती देखकर, बकरेके कानकी किनारीमेंसे जरासा रक्त लेकर माताजीको तिलकं किया और बकरेको छोड़ दिया। अन्य सब विधि यथावत् पूरी हुई। कसारका प्रसाद तैयार किया गया था वह सबने लिया। वही प्रसाद महाराजा भावसिंहजीको पहुँचाया गया और समस्त घटनाकी यथार्थ जानकारी उन्हें दी गयी। गुणग्राहक महाराजाने प्रसन्न होकर उस निडर और दृढ़ निश्चयवाली ब्राह्मण बाईको बड़ी भेंट दी, एवं राज-आज्ञासे पशुवधको बन्द कराया। परम अहिंसाधर्मकी विजय हुई। ६० अद्भुत गुरुदक्षिणा - अपने देशके उड़ीसा प्रान्तमें कटक नामका एक बड़ा नगर है। वहाँ सात्त्विक वृत्तिवाले देवेन्द्रनाथ मुकर्जी नामक एक सज्जन रहते थे। उनके घर एक दिन भोलानन्दगिरि नामके एक महात्मा पधारे। चार-पाँच विद्यार्थियोंने आकर उन्हें प्रणाम किया। स्वामीजीने कुशलता पूछकर आशीर्वाद दिये। विद्यार्थियोंने उठनेकी तैयारी की तव महात्माने कहा, 'बालको, मन्दिरमें अथवा साधु-संतोके पास जव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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