Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 85
________________ चारित्र्य सुवास ७२ हुईं। ये अनुवाद उन्हें इतने सुंदर लगे कि तुरन्त उन्होंने श्री अरविन्दके पास जाकर कहा कि ये अनुवाद तो अवश्य छपाने चाहिएँ। मैंने भी रामायण और महाभारतके अनुवाद (बंगाली में ) किये हैं परन्तु आपके अनुवाद देखनेके बाद मुझे अपनी कृतियाँ देखकर लज्जा आती है। श्री अरविन्दने कहा, 'महानुभाव ! ये अनुवाद मैंने छपानेके लिए तैयार नहीं किये हैं, निजी स्वाध्याय-साधनाके भागरूप किये हैं । और फिर, ऐसी अनेक कृतियाँ हैं जो सभी मेरे जीवनकालमें प्रकाशित भी नहीं हो सकेंगी। वैसा करनेकी मेरी विशेष इच्छा भी नहीं है।' श्री अरविन्दकी बात सुनी और कीर्तिके प्रति उनकी उदासीनता देखकर सर रमेशचन्द्र दत्त आश्चर्यसहित नम्रीभूत हो गये । ६३ स्वादका त्याग उन्होंने श्रीकृष्णसे पूछा कि 'मेरा यज्ञ कब समझँ ?" श्रीकृष्णने उत्तर दिया शंख स्वयं बजे तव समझना कि यज्ञ पूरा हुआ परन्तु शंख नहीं बजा । तब शंख क्यों नहीं बजा ? श्रीकृष्ण बोले : भक्त भूखा होगा ।' नगरमें तपास की तो अपने घर बैठा था । वह युधिष्ठिरके यहाँ नहीं आया था । जिसने चौदह भुवनके नाथकी शरण ली है ऐसे इस भंगीको महाराजा युधिष्ठिरने राजसूय यज्ञका आरम्भ किया तब पूरा हुआ है ऐसा मैं 'मेरा यह पांचजन्य पूरा हुआ ।' यज्ञ तो युधिष्ठिरने पूछा कि 'नगरमें देखो, कोई एक भंगी आत्माराम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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