Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 83
________________ ७० · चारित्र्य-सुवास जाओ तब कुछ देना चाहिए।' विद्यार्थियोंको लगा कि हम तो गरीब और पढ़नेवाले विद्यार्थी हैं, पैसे कैसे और कहाँसे लायें ? उनका मनोभाव समझकर महात्मा तुरन्त बोले, 'बालको ! मुझे अन्य किसी वस्तुकी आवश्यकता नहीं है। आज तुम इस प्रकारका संकल्प करो : (१) असत्य आरोप या कलंक लगाना नहीं। (२) दूसरेकी निन्दा-चर्चा करनी नहीं। (३) शर्त लगाना नहीं। (४) चारित्रभ्रष्ट होना पड़े ऐसा काम करना नहीं।' विद्यार्थियोंने प्रसन्नता व्यक्त की और वे इसप्रकार करनेकी वचनरूपी दक्षिणा महात्माको देकर अपने छात्रावासकी ओर चल दिये। - इस सत्य घटनाका वर्णन करनेवाले डॉक्टर सतीशचन्द्र रॉय स्वयं भी इन विद्यार्थियों से एक थे, जिन्होंने महात्माके समक्ष उपरोक्त बातोंका संकल्प किया था । ६१ साधनाका मार्ग महात्मा विजयकृष्ण गोस्वामी अध्यात्मके अच्छे प्रचारक थे। एक समय वे लाहोरमें एक धर्मशालामें ठहरे थे। प्रातःकालमें बहुत सबेरे उठकर वे भजनमें बैठे थे तब उन्हें स्वयंपर धिक्कारका भाव जाग्रत हुआ। वे विचारने लगे कि मैं सबको सत्यका और सत्कर्मका उपदेश देता हूँ परन्तु मैं स्वयं कहाँ उसका पालन करता हूँ ? क्या इसी प्रकार मेरा जीवन निष्फल व्यतीत होगा ? क्या मेरा जीवन विशुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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