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चारित्र्य-सुवास और सात्त्विक नहीं बन पायेगा ?
ऐसे अनेक विचारोंकी उलझनमें उन्होंने, पासमें ही बहती रावी नदीमें कूदकर जीवनका अन्त कर देनेकी तैयारी की। वे नदीसे थोड़ी ही दूरीपर थे तभी ध्वनि आयी 'रुक जाओ, क्या करने जा रहे हो ? आत्महत्या क्या बड़ा पाप नहीं है ? शरीर-त्यागसे पापका त्याग हो जायेगा ? सूक्ष्म दृष्टिसे साधनामार्गका पुनः अवलोकन करके सत्संगका आश्रय करो। खेद किये बिना प्रभुकृपा पर विश्वास रखकर धैर्य धारण करो। देर-सबेरसे सफलता अवश्य मिलेगी।'
ऐसे निर्जन स्थानमें अपरिचित आवाज़ सुनकर पीछे देखा तो किसी महात्माने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें वापस धर्मशालामें ले गये।
यही महात्मा थोड़े समयके बाद साधनाके उच्चतर शिखरपर बिराजमान हुए और ढाकामें साधना आश्रम स्थापित करके अनेकोंके मार्गदर्शक बने।
कीर्तित्याग
भारतके अर्वाचीन इतिहासकारोंमें सर रमेशचन्द्र दत्तका नाम प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने समयमें अनेक ग्रन्थोंकी रचना की।
एक समय वे महर्षि अरविन्दसे मिलने गये। श्री अरविन्दसे उन्होंने माँग की कि उनके पास स्वयंलिखित कोई ग्रन्थ हों तो उनकी प्रति दिखायें। श्री रमेशचन्द्र दत्तको उनके
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