Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 70
________________ चारित्र्य-सुवास उसने एक पैसे वाले आठ सिक्के दे दिये। सुनार तो हँस-हँसकर लोटपोट हो गया और एक ग्रेज्युएटका उसने मूल्यांकन कर लिया। (२) एक समय एक पाठशालाके हेडमास्टरने अपने विद्यार्थियोंको ड्रिल सिखानेके लिए पासके गाँवकी पाठशालाके ड्रिल-मास्टरको बुलाया। उन्हें लेनेके लिए स्टेशनपर मोटर भेजी। कुछ दिनोमें ड्रिल-शिक्षकका कार्य पूरा हुआ और उस शिक्षकको स्टेशन तक पहुँचानेके लिए राज्यके शिक्षा-विभागको पत्र लिखकर मोटर मँगायी। थोड़ी देरमें दूसरा पत्र लिखकर उस ड्रिल-मास्टरको पढ़वाया। जिसमें लिखा था कि 'मोटरके साथ ड्राईवरको भी भेजें, पहले पत्रमें मैं यह लिखना भूल गया हूँ।' ड्रिल-मास्टर पत्र पढ़कर खूब हँसे और कहा, साहब ! मोटर आयेगी तो अकेली तो नहीं आयेगी न ! पढ़नेके साथ-साथ गुनें तो जीवनमें ऐसा घोंटाला न हो, यही हमें ऐसे प्रसंगोंपरसे सीखना है। ४९ क्षमाकी सच्ची साधना संसारमें अनेक विदुपी, स्त्रियोंको कर्कश पति मिलता है और अनेक महापुरुषोंको कर्कशा पली मिलती है, फिर भी विचारशील व्यक्ति अपनी समझदारीसे घर-संसारको स्वर्गसमान वना देता है। महान भक्त तुकारामकी पली भी बहुत कर्कशस्वभाववाली थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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