Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 76
________________ चारित्र्य-सुवास __ पराजयको प्राप्त होते हुए भी मलबाईकी छटा, प्रसन्नता और साहस देखकर शिवाजीको आश्चर्य हुआ। मलवाईने स्पष्टरूपसे कह दिया कि तुम मुझे मृत्युदण्ड दे सकते हो परन्तु किसी भी प्रकारसे मेरा अपमान नहीं होना चाहिए। शिवाजी शूरवीरताके पुजारी थे। उन्होंने मलबाईसे कहा, 'अपनी माता जीजावाईके स्थानपर ही मैं तुम्हें मानूँगा। तुम्हारा राज्य स्वतन्त्र रहेगा। मराठा साम्राज्य तुम्हारे राज्यके साथ, मैं जीवित हूँ तबतक एक उत्तम मित्रराज्यके रूपमें व्यवहार करेगा।' मलबाई, शिवाजीका विधान सुनकर गद्गद हो गयीं और एक सच्चे छत्रपतिके रूपमें उनकी प्रशंसा की। सभी सभासदोंने हर्षनाद किया : 'छत्रपति शिवाजी महाराजकी जय।' तब शिवाजीने प्रतिघोष किया, “माता मलवाईकी जय।' * ५५ पात्रभेद एक दिवस प्रसिद्ध गायक तानसेनके संगीतसे प्रसन्न होकर शहंशाह अकवरने उससे पूछा, 'इतना सुन्दर संगीत तुमने कहाँसे सीखा ?' तानसेनने उत्तर दिया, 'अपने गुरु हरिदासजीके पाससे।' अकबरके मनमें विचार आया कि हम तानसेनके गुरुके पास जाकर उनका संगीत सुनें। पश्चात् तानसेनको लेकर अकबर अपनी मंडली सहित हरिदासजीके निवासस्थान पर गये। हरिदास तो सूरदासजीकी तरह निरन्तर ईश्वरभक्तिमें निमग्न रहते थे। वे ईश्वर-भजनके अतिरिक्त और कुछ नहीं गाते थे । बादशाहने हरिदासजीसे कुछ संगीत सुनानेकी प्रार्थना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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