Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 78
________________ चारित्र्य-सुवास उदारतापूर्वक दान दिया। __चाहडने, स्वयं जिस राज्यको जीतने निकला था उस राज्यके किलेको घेर लिया और उसके शूरवीर सैनिकोंने देखते-देखते किला जीतकर उस राज्यमेंसे सात करोड़ रुपयेका सोना और ग्यारह हज़ार घोड़ोंकी वसूली की। यह सब लेकर वह पाटणके दरबारमें राजा समक्ष उपस्थित हुआ और सारा वास्तविक वृत्तान्त राजाको बताया । तब राजाने कहा, 'तेरी दान देनेकी यह प्रकृति न गयी सो न गयी।' राजाकी यह बात सुनकर निर्भीकतापूर्वक सेनापति चाहडने कहा, 'महाराज ! आप पितृपरम्परासे राजा नहीं हैं अतः आपमें स्वाभाविकरूपसे दानशीलताका गुण नहीं है, और इसीलिए आपका दान मर्यादित है। मुझे तो पितृपरम्परासे ही दानके संस्कार मिले हैं इसलिए मैं दानमें अधिक धन व्यय करता हूँ यह आपकी बात सत्य है। गुणग्राहक राजा कुमारपालने सत्यका स्वीकार करते हुए मंत्रीको कहा कि 'यह तेरा दान ही तेरा रक्षामंत्र है, कारण कि जितना तू देता है उससे अनेक गुना तुझे मिल ही जाता है, तुझे धन्य है !' शीलकी रक्षा दूसरा विश्वयुद्ध पूरा होनेकी तैयारी थी। जापान द्वारा जीत लिये गये ब्रह्मदेशके अमुक भागको ब्रिटिश सेनाने भारतीय सैनिकोंकी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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