Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 67
________________ ५४ चारित्र्य सुवास मंत्रीने अत्यन्त हर्षोल्लासपूर्वक उन सात पैसोंको स्वीकार किया, परन्तु वे इतने पर ही नहीं अटके। उन्होंने तो टिप्पणीमें सबसे पहला नाम भीमाका लिखा । सेठ लोगोंने टिपण्णी देवकर पूछा, 'मंत्रीजी ! ऐसा क्यों ?' मंत्रीने उत्तर दिया, 'भीमाने जो कमाया और तनतोड़ परिश्रमसे इकट्ठा किया उस सर्वस्वका उसने दान किया, जबकि मैं और आप कमाईका अमुक भाग ही लाये हैं; इसलिए प्रथम स्थानका अधिकारी सर्वस्वका दान देनेवाला भीमा है । ' ४६ करुणासागर सन्त भक्तिमार्गमें, संकीर्तनकी महिमा बढ़ानेवाले सन्तोंमें श्री चैतन्यदेव बहुत ही जाने-माने हैं। (ईस्वी सन् १४८५ १५३३) चौबीस वर्षकी वयमें संन्यासधर्म ग्रहण करनेके वाद उन्होंने प्रभुनामकी महिमाका प्रचार करनेके लिए भारतके अनेक प्रदेशोंमें भ्रमण किया। एक बार वे बंगालमें राढ (कलकत्ताके पश्चिममें) प्रदेशके एक छोटे गाँवमें आ पहुँचे। उन्हें पता चला कि एक ब्राह्मण विधवा बाई भूखके कारण किसी स्थानपर पड़ी है। संकीर्तन चालू होनेमें अभी एक-दो घण्टे बाकी होंगे वहाँ तो चैतन्यदेव स्वयं भिक्षापात्र लेकर गाँवमें सीधा लेने निकल पड़े। तीन-चार घरोंसे थोड़ा-थोड़ा लाकर इकट्ठा हुआ सीधा उन्होंने उस भूखी ब्राह्मणी बाईके समक्ष रखखर कहा, 'माताजी ! मैं तुम्हारा बालक हूँ, तुम्हारे लिए www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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