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चारित्र्य-सुवास हिन्दुस्तानमें मानवके देहमें एक 'खुदाका फ़रिश्ता' रहता है। ये जौहरी और कोई नहीं, परन्तु जगतको अध्यात्मका संदेश देनेवाले और गांधीजीको सत्य और अहिंसाकी प्रेरणा देनेवाले श्रीमद् राजचन्द्र (रायचन्दभाई) थे।
इस एक दृष्टान्तमें देखो ! महापुरुषोंकी उदारता, नीति, संतोष और सूक्ष्म अहिंसाधर्मको निभानेकी लगन !!
न्यायपूर्ण आयमें संतोष
श्री रामकृष्ण परमहंसके अनेक प्रसिद्ध शिष्योंमें नाग महाशय नामके एक सज्जन भी थे। उनके पिता सामान्य नौकरी करते और स्वयं होमियोपथीकी प्रेक्टिस करते। उनके अधिकांश रोगी गरीब अथवा विलकुल सामान्य परिस्थिति वाले होते थे इसलिए उनकी आय भी सामान्य मध्यमवर्गीय कुटुम्व जैसी होती थी।
एक समय एक श्रीमन्त बहनने उनसे इलाज करवाया। रोग बहुत ही कष्टसाध्य था परन्तु उस बहनका रोग उनकी दवासे बिलकुल मिट गया। बिल चुकानेका समय आया तब वह बहन महाशयको अधिक पैसे देने लगी।
नाग महाशयने कहा, 'बहन ! सात दिनकी फीसके चौदह रुपये और दवाकी कीमत छह रुपये, इसप्रकार कुल मिलाकर तुम्हें बीस रुपये देने हैं।'
बहनने अधिक पैसे लेनेका बहुत आग्रह किया तब नाग
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