Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 47
________________ चारित्र्य-सुवास सभी राज्य-सभासद यह देखकर स्तब्ध हो गये। कविके हर्षकी सीमा न रही। राजा, महाकविके सामने टक-टक देखकर प्रेम बरसाते थे और महाकवि अपनी कृतज्ञता प्रगट करते थे कि उन्हें अपनी वस्तुका सही मूल्यांकन करनेवाला आदरकर्ता जौहरी मिल गया था ! २९ 'मात्र इतनी बातसे पतन' - लगभग तीन हजार वर्ष पूर्वकी यह बात है। उस समय बनारसमें जैनोंके तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथके पिता राजा अश्वसेन राज्य करते थे और पड़ौसी राज्यके नाते उनकी मगध नरेशके साथ अच्छी मित्रता थी। ____ इन दिनों बिहार (मगध)की माही नदीके किनारे उद्ररामपुत्र नामक एक योगी रहते थे । मगधेश्वर उनके शिष्य थे। इन महात्माको आकाशगामिनी विद्या सिद्ध होनेसे ये प्रतिदिन राजमहलमें आकर आहार करके पुनः आकाशमार्गसे वापस चले जाते थे। __एक बार मगधेश्वरको आवश्यक कामसे अचानक कहीं बाहर जाना हुआ इसलिए अपने एक मंत्रीको महात्माका स्वागत और भोजनकी व्यवस्था करनेका निवेदन करके वे बाहर चले गये। इस ओर योगी आहारके लिए पधारे। मंत्रीकी एक सुशील, अति सुन्दर कन्या थी उसने योगीका स्वागत करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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