Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 49
________________ ३६ चारित्र्य-सुवास पास जाकर बैठा। उसने देखा कि गाँवकी स्त्रियाँ उसी कुएँसे पानी भरती थीं और पानी खींचते समय रस्सीकी रगड़से कुएँके सिरेवाले पत्थरपर गहरे निशान पड़ गये हैं। उसने मनमें विचार किया कि वारंवार घिसानेपर यदि कोमल रस्सीसे ऐसे कठिन पत्थरमें भी निशान पड़ सकते हैं तो निरंतर विद्याभ्यास करनेसे मैं विद्वान क्यों नहीं बन सकता ? तुरंत उस विद्यार्थीने निराशाका त्याग किया। वह नियमितरूपसे पाठशालामें जाने लगा और सतत विद्याभ्याससे उसकी बुद्धिका विकास हुआ। थोड़े समयमें वह अनेक विद्याओंमें पारंगत हो गया। ____ इस पुरुषकी विद्वत्ता, चातुर्य और कलाकौशल्य देखकर देवगिरिके यादव-नरेश महादेवरावने राजदरबारमें राजपंडितके रूपमें उसकी नियुक्ति कर दी। इन्होंने पाणिनीके महान व्याकरणग्रन्थ पर एक 'मुग्धबोध' नामक सरल टीका भी लिखी है | इसप्रकार सतत विद्याभ्यासके द्वारा एक मूर्ख विद्यार्थीसे एक महान राजपंडित बननेवाले दूसरे कोई नहीं परन्तु वे थे पंडितराज श्री पोपदेवजी। इनकी गणना, उस समयके ज्ञानेश्वर और हेमाद्रि जैसे महापुरुषोंके साथ आदरपूर्वक की जाती है। ३१ द्रष्टिभेद चम्पानगरीके बाहर एक बड़ी खाई थी। उस खाईका पानी बहुत गंदा और दुर्गन्धयुक्त था। एक बार चम्पानगरीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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