Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 56
________________ चारित्र्य-सुवास नवयुवकने उन्हें प्रणाम करके कहा, 'क्या आप थोड़ी देरके लिए मेरी दुकान पर पधारनेकी कृपा नहीं करेंगे ?' । विद्यासागर : भाई, पहचानके बिना मैं तेरी दुकानपर कैसे आ सकता हूँ? इतना सुनते ही उस नवयुवककी आँखोंमेंसे टपाटप आँसूकी धार बहने लगी । गद्गद होकर उसने दो वर्ष पूर्वकी घटना विद्यासागरजीको कह सुनायी। अब वह फेरीवालेमेंसे दुकानदार और उसमेंसे बड़ा व्यवसायी बन गया था। यह जानकर विद्यासागरजीको बड़ा संतोष हुआ। __ विद्यासागरजीने उस नवयुवकको प्रोत्साहन दिया और आशीर्वाद प्रदान किये, एवं कुटुम्बके एक बड़े व्यक्तिकी भांति आत्मीयतापूर्वक उसके साथ बैठकर बातें की । __इस युवकके साथ ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसे महापुरुषकी इतनी सहृदयता क्यों हैं ऐसे विचारसे आसपासके लोग आश्चर्यका अनुभव करने लगे, परन्तु सुपात्रदानकी महिमाका प्रत्यक्ष फल उनके ज्ञानसे बाहर था ! प्रभुप्राप्तिका उपाय - - - ___ एक स्त्रीको किसी पुरुषके साथ प्रेमबन्धन हो गया। वह उसके प्रेममें पागल थी। एक समय प्रियतमका वियोग होनेसे उसने अन्नजलका त्याग कर दिया। उसका शरीर क्षीण होने लगा, कुछ दिन बाद अचानक उसे अपने प्रियतमके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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