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चारित्र्य-सुवास रुपयेकी अपनी सम्पत्तिका एक ट्रस्ट बनाया और उसमेंसे समस्त भारतीय स्तरके उच्च कक्षाके सदाचारी विद्वानोंको पुस्तकोंके भेंटस्वरूप अथवा विशेष संशोधनके लिए छात्रवृत्तिके रूपमें सहायता भेजना आरम्भ किया। यह छात्रवृत्ति पानेके लिए न तो कोई आवेदन-पत्र भरना पड़ता था और न ही धनराशि लेनेके लिए स्वयं जाना पड़ता था। जो धनराशि नियत हुई हो वह मनीऑर्डर द्वारा उस विद्वानको घर-बैठे ही पहुँच जाती थी।
जब इस ट्रस्टकी प्रथम वार्षिक रिपोर्ट प्रगट होनेवाली थी तव उसमें एक जगह लिखा था : 'जिन-जिन विद्वान अध्यापकोंको इस छात्रवृत्तिका लाभ मिला है उनकी नामावली निम्नप्रकार है।' श्रीमद् मुखोपाध्यायने जव यह पढ़ा तव शीघ्र ही उन्होंने सुधरवाया कि 'जिन-जिन महानुभावोंने इस ट्रस्टकी छात्रवृत्ति स्वीकार करनेकी सहर्ष अनुमति देनेकी कृपा की है उनकी शुभ नामावली निम्नप्रकार है।'
देखिए ! भारतीय संस्कृतिके महान पुरस्कर्ताओंकी विद्वानोंके प्रति और विद्याके प्रति कैसी उदात्त भावना ! उनके मनमें सरस्वतीके आराधक विद्वानोंके प्रति कितना बहुमान था इसका ऐसे प्रसंगों परसे हमें ध्यान आ सकता है।
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कृतज्ञता
हिन्दीके प्रसिद्ध कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अपनी उदारताके लिए अत्यन्त प्रसिद्ध थे। उनके जीवनमें एक समय ऐसा
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