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चारित्र्य-सुवास
वह पठान तो स्तब्ध रह गया, और उसका सारा जीवन ही बदल गया। अब वह आते-जाते व्यक्तियों और यात्रियोंको हर प्रकारसे सहायभूत होने लगा।
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संयमसे सिद्धि
विश्वविजेता बननेकी महत्त्वाकांक्षा रखनेवाले नेपोलियन बोनापार्टका बचपनमें बहुत सामान्य स्थितिमें पालन-पोषण हुआ। बादमें विद्यार्थी अवस्थामें पढ़नेके लिए वह 'अकलोनी' नामक नगरमें एक नाईके घर रहा था। नाईकी पली उसके सौन्दर्य
और शरीरसौष्ठवके प्रति आकर्षित हुई और अनेक चेष्टाओं द्वारा उसे अपनी ओर खींचनेका प्रयल करती थी, परन्तु इस भाईको तो अपनी पुस्तकोंसे फुरसत नहीं मिलती और उसकी ओर कुछ ध्यान नहीं देता। इसप्रकार संयम रखकर उसने विद्याकी आराधना की थी।
थोड़े वर्षों के बाद जब नेपोलियन फ्रान्सका मुख्य सेनापति वना तब एक बार उसका इस नगरमें आगमन हुआ। नाईकी पली अपनी दुकान में बैठी थी। नेपोलियनने उससे पूछा, 'यहाँ एक बोनापार्ट नामका विद्यार्थी पढ़ता था, तुम जानती हो ?' . उस स्त्रीने कहा, 'जाने दो ऐसे नीरस पुरुषकी वात, वह तो केवल पुस्तकोंका कीड़ा बनकर रहता, शान्तिसे किसीके साथ प्रेमसे मीठी बातें करनेकी भी उसे फुरसत नहीं थी।'
नेपोलियन हँसा। 'तुम्हारी बात सच है, वह था तो
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