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वरकन्या सावधान
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महाराष्ट्रके एक छोटे गाँवमें सूर्याजी पंत नामक एक भद्रपरिणामी पुरुष रहता था। उनके घरमें नारायण नामका एक छोटी उम्रका पुत्र था। ___ बालक अभी तो बारह वर्षका हुआ होगा, परन्तु माँको पुत्रवधूका मुख देखनेकी उत्कट इच्छा उत्पन्न हुई। पिताको भी गम खाकर सम्बन्ध कर देना पड़ा।
बारह वर्षके किशोर नारायणका ब्याह करानेके लिए बराती हर्षपूर्वक रवाना हुए। धूमधामसे सभी लग्नमण्डपमें आ पहुँचे। ब्राह्मणोंने लग्नवेदी तैयारी की थी। मंगलाष्टक आरम्भ होनेपर 'शुभ मंगल सावधान' ये शब्द नारायणके कानमें पड़े
और सचमुच जैसे इन शब्दोंका जादुई प्रभाव हुआ हो इसप्रकार वह किशोर सावधान हो गया, चट-पट खड़ा होकर वह भागा और कभी वापस ही नहीं लौटा।
एक तो पूर्वजन्मकी आराधनाके संस्कार, एकान्तवासकी साधना, बारह वर्षका कठिन तप तथा तीर्थयात्रा और सत्संगका लाभ आदि अनेक कारणोंसे यह किशोर आगे चलकर महान योगीके रूपमें प्रसिद्ध हुआ। सारे महाराष्ट्रमें इन्होंने अनेक स्थानों पर मठोंकी स्थापना करके लोगोंमें राष्ट्रीय भावना जगायी और शिवाजी महाराजके गुरुपदपर रहकर उनको हर प्रकारका मार्गदर्शन और सहयोग दिया। वे भारतके सन्तोंमें
'समर्थ गुरु रामदास' के नामसे जाने गये। सादगी, संतोष, . . सहनशीलता, सर्वधर्म-समभाव, स्वावलम्वन, भारतीय संस्कृतिके
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