Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 57
________________ ४४ समाचार मिले, वह उसी समय प्रेमोन्मत्त होकर उससे मिलने चल निकली । वह जहाँसे जा रही थी वहाँ मार्गमें अकबर बादशाह जाजम बिछाकर नमाज़ पढ़ रहे थे । स्त्री तो प्रियतमके विचारोमें मग्न थी इसलिए उसे कुछ ध्यान रहा नहीं और बादशाहकी जाजम परसे चली गयी। यह सब नमाज़ पढ़ते हुए बादशाहने देखा । उनके क्रोधका कोई पार नहीं रहा, परन्तु नमाज़के समय वह शान्त रहा । वह स्त्री प्रियतमसे मिलकर वापस आयी तब बादशाहने उसे कहा, 'अरी पापिनी ! क्या तुझे पता नहीं था कि वह नमाज़ पढ़नेकी जाजम थी, और बादशाह अकबर नमाज़ पढ़ रहे थे ?" उत्तरमें स्त्रीने कहा, 'मैं तो सामान्य पुरुषके प्रेममें मग्न होनेसे मुझे जाजमका ध्यान नहीं रहा परन्तु आप तो महान खुदाकी बंदगीमें लीन थे, तो फिर मुझे कैसे देख लिया ?" वादशाहको अपनी भूल समझमें आयी और अपनी आँखें खोल देनेके लिए उन्होंने उस स्त्रीको अभिनन्दन दिये। वास्तवमें, प्रभुके प्रेममें पागल बनकर जगतकी अन्य वस्तुओंको भूले विना प्रभुकी प्राप्ति नहीं होती । ३७ चारित्र्य-: नम्रताका आदर्श पिछले डेढसौ वर्षोंमें, बंगालमें जो अनेक महानुभाव हुए उनमें एक श्री भूदेव मुखोपाध्याय भी थे । उन्होंने अपने जीवनकालमें ही एक लाख साठ हज़ार Jain Education International - सुवास For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106