Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 55
________________ ३५ महापुरुषकी उदारता - ईस्वी सन् १८६५का वर्ष। बंगालमें ऐसा दुष्काल पड़ा कि अनाज कहीं देखनेको भी नहीं मिला। इतना ही नहीं, बड़ी संख्यामें लोग अपने कुटुम्ब और पशुओं सहित प्रदेश छोड़कर जाने लगे। ऐसे समयमें बरद्वानमें श्रीयुत ईश्वरचन्द्र विद्यासागरके पास एक तेरह-चौदह वर्षका किशोर आया । भूख और वेदनासे वह दुबला दिखाई देता था, उसने विद्यासागरजीके पास एक पैता माँगा। विद्यासागर : मैं तुझे चार पैसे दूँ तो? किशोर : साहब, मेरी हँसी मत उड़ाइए, मैं सचमुच विपत्तिमें हूँ। विद्यासागर : मैं हँसी नहीं उड़ाता। कह तो सही, तू चार पैसोंका क्या करेगा? किशोर : दो पैसेका खाना लेकर दो पैसे माँको दूंगा। विद्यासागर : और चार आने दूं तो ? किशोर : खानेके बाद जो पैसे बचेंगे उनमेंसे आम लाऊँगा और उन्हें बेचकर लाभ कमाऊँगा। विद्यासागरजीने किशोरको उद्यमी और प्रामाणिक देखकर एक रुपया दिया। किशोरका मुख कृतज्ञता और प्रसन्नतासे खिल उठा। योगानुयोगसे दो वर्षके अन्तराल बाद विद्यासागरजीको फिरसे बरद्वान आनेकी इच्छा हुई। वे बाज़ारमेंसे जा रहे थे कि एक Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.orgPage Navigation
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