Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 51
________________ ३८ चारित्र्य-सुवास पानी तो उस खाईका ही था, परन्तु उसके स्वरूपमें परिवर्तन किया गया होनेसे मधुर और सुगन्धित बना था। राजाने यह बात जानकर आनन्द प्रगट किया, और किसी भी वस्तुके मात्र बाह्य दिखाव परसे उसके सम्बन्धमें कोई अभिप्राय निश्चित नहीं करनेका निर्णय लिया। और फिर, बाहरसे खराब दिखनेवाली वस्तुको अच्छी बनायी जा सकती है, पुद्गलमात्र परिवर्तनशील है यह बात भी राजाको समझमें आ गयी। ३.२ सन्त-सेवा ___ अमदावादके प्रसिद्ध सन्त सरयूदासजी महाराजके पूर्वाश्रमकी यह बात है। गृहस्थाश्रममें भी उनपर सत्संग और भक्तिकी धुन सवार रहती थी। एक दिन वे अपनी दुकान पर बैठे थे, वहाँ उन्हें समाचार मिले कि अमुक सन्त-महात्मा अभी-अभी पधारे हैं और वृक्षके नीचे विश्राम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी दुकान तुरंत बन्द कर दी और शीघ्रतासे सन्तोंके पास पहुंचकर उनका विनय-सत्कार करके अपने योग्य सेवाके लिए निवेदन किया। __मध्याह्नके लगभग बारह बज गये थे, इसलिए गाँवमें भिक्षाके लिए जाना भी सन्तोंके लिए कठिन था। सुबहसे कुछ लिया नहीं था इसलिए भोजनकी आवश्यकता तो थी ही। सरयूदासजी इस स्थितिको तुरंत ही समझ गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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