Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 52
________________ चारित्र्य-सुवास 'थोड़ी देरमें फिरसे मैं आपकी सेवामें उपस्थित होता हूँ' ऐसा कहकर वे अपने घर गये । रसोईघरमें देखा तो सेर-आध सेर जितना ही आटा था, उन्होंने धर्मपत्नीको शाक वगैरह तैयार करनेको कहा और स्वयं गेहूँ पीसने बैठ गये। लगभग डेढ़ घण्टेमें सादा भोजन तैयार करके वे सन्तोंकी सेवामें पहुंचे। ___ सन्तोंने संतोषपूर्वक भोजन समाप्त किया। भक्तकी सन्त-सेवा, स्वावलम्बन और अपूर्व लगन देखकर महात्माओंने धर्मलाभका आशीर्वाद दिया। अनपढ़के उन्नत संस्कार - गुजरातके प्रसिद्ध समाजसेवी श्री रविशंकर महाराज, तंगीके सवासौ दिनोंमें किसी छोटे गाँवमें एक मन गुड़ लेकर घर-घर बाँट रहे थे। एक छोटे-से घरकी नन्ही बालिकाने कहा, 'दादाजी, मैं यह गुड़ नहीं लूंगी।' 'क्यों नहीं ?' महाराजने पूछा। 'क्यों कि मैंने उस गुड़को पानेके लिए परिश्रम नहीं किया है।' 'तुझे ऐसा किसने सिखाया ?' 'मेरी माँने।' महाराज और नन्ही बालिका उस माताके पास गये। महाराजने बालिकाकी मातासे पूछा, 'क्यों बहन, तूने ही अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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