Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 50
________________ ३७ चारित्र्य-सुवास राजा अपने सुबुद्धि नामक जैन मंत्री एवं अन्य सभासदोंके साथ उस खाईके पाससे निकल रहे थे। राजा और सभी सभासदोंने दुर्गन्धके कारण नाकके आगे कपड़ा लगा लिया परन्तु सुबुद्धि मंत्रीने वैसा नहीं किया। जिन सभासदोंको मंत्रीके प्रति ईर्ष्या थी उन्होंने ज़रा धीरेसे कहा, 'राजन् ! आपको इस खाईका पानी सिर फट जाय ऐसी दुर्गन्धवाला लगता है परन्तु आपके ये मंत्री आपका उपहास करते लगते हैं। देखिए तो सही, हम सभीने नाकके आगे कपड़ा लगा लिया किन्तु इनको तो सुगन्ध आती लगती है !' ऐसे वचन सुनकर भी सुबुद्धि मंत्री सहेतुक मौन रहे। उन्होंने निश्चय किया कि 'समय आने पर राजाको सही परिस्थितिका भान कराऊँगा।' कुछ समयके पश्चात् मंत्रीने राजा और सभासदोंको अपने घर भोजनका निमंत्रण दिया। समयपर सबने भोजन किया। भोजनके बाद पानी दिया गया। पानी पीते-पीते राजाको मंत्रीके प्रति ईर्ष्याभाव जाग्रत हुआ, क्योंकि ऐसा स्वादिष्ट और सुगन्धित जल राजाने पहले कभी नहीं पिया था। राजाने क्रुद्ध होकर मंत्रीसे कहा कि 'मेरे राज्यमें रहकर अकेले-अकेले ऐसा पानी पीते हुए तुम्हें शरम नहीं आती ?' सभासदोंने भी राजाकी बातमें साथ दिया। ___मंत्रीने राजासे प्रार्थना की कि 'मुझे अभय-वचन दें तो आपकी बातका स्पष्टीकरण करूँ ।' राजाने वचन दिया। ___ मंत्री सबको मकानके तलघरमें ले गये। तलघरमें उस दुर्गन्धयुक्त खाईका पानी लानेकी व्यवस्था की गयी थी। यही गंदा पानी वैज्ञानिक रीतिसे छानकर शुद्ध किया जाता था, उसमें अनेक प्रकारके सुगन्धित द्रव्य मिलाये जाते थे। मूलरूपसे Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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