Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 45
________________ ३२ चारित्र्य-सुवास दिन वे शिष्योंके साथ बाजारके बीचमेंसे जा रहे थे तब उन्होंने ताड़ीवालेकी दुकानसे ताड़ी पी। अनसमझ शिष्य भी गुरुका अनुकरण करके एक-दूसरेके सामने देखकर मलकते-मलकते ताड़ी पीने लगे। जगद्गुरु आगे चले, कहीं एक जगहपर सीसा गलाया जा रहा था वहाँ जाकर वे खड़े रहे और कढ़ाईमेंसे उबलता हुआ सीसा लेकर पीने लगे! शिष्य एक-दूसरेके सामने देखते हुए मलिन मुख करके जड़ जैसे खड़े रहे, सीसा पीनेका किसीमें साहस नहीं हुआ। तब शंकराचार्यने कहा, 'तुम दुर्गुणोंका अनुकरण करना चाहते हो, जो तुम्हारे लिए नर्कका कारण है और स्वर्गका पद देनेवाले सद्गुणोंका तुम अनुकरण नहीं करते।' इतना कहकर शिष्योंको उपदेश देते हुए उन्होंने कहा : 'गुरु कहें सो करना, गुरु करें वैसा नहीं करना।' यह सुनकर सव शिष्य श्रीमद् शंकराचार्यके पैरोंमें गिरकर क्षमा माँगने लगे। २८ कविका सचा मूल्यांकन - - जब भारतमें सम्राट हर्षका शासन प्रवर्तमान था उस समयकी यह बात है। काश्मीरके महामहिमके रूपमें उन्होंने मातृगुप्त नामक एक राज्याधिकारीकी नियुक्ति की थी। मातृगुप्त एक उच्च कोटिके कवि और उदारमनके व्यक्ति थे। उस कालमें भारत एक महान देश था। कला, साहित्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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