Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 43
________________ २६ सत्याग्रहकी विजय विक्रमकी दशवीं शताब्दीकी बात है। उस समय काश्मीरमें महाराजा यशस्करदेव राज्य करते थे। प्रजा सर्वप्रकारसे सुखी थी और राजा-प्रजाके बीच पिता-संतान जैसा सम्बन्ध होनेसे शान्ति और मेल-जोलका वातावरण था। एक दिन महाराजा राजदरबारमें बैठे थे उस समय द्वारपालने आकर समाचार दिये कि एक मनुष्य आत्महत्या करनेके लिए राजद्वारपर आकर खड़ा है। राजाने तुरंत ही उसे अन्दर बुलाकर पूछा, "भाई, तुझे किस दुःखके कारण ऐसा करनेका समय आया है ?' उस व्यक्तिने अपनी बात प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'मैं इस गाँवमें दस वर्ष पहले खूब धनसम्पन्न नागरिकके रूपमें रहता था परन्तु भाग्य बदलते मेरी सर्व सम्पत्ति समाप्त हो गयी और मेरे रहनेका मकान भी बेच देना पड़ा। अपनी पलीके निर्वाहके लिए अपने मकानका कुआँ और आसपासकी पाँच फुट जितनी जगह मैंने रखी थी, जहाँ माली लोग आकर बैठते, फूल बेचते और मेरी पलीका निर्वाह भाड़ेमेंसे हो जाता।' _ 'मैं विदेशसे कमाकर वापस आया और देखा तो मेरी पत्नीको कुएँके पासकी जगहसे खदेड़ दी गयी थी और वह जगह मकान-मालिकने पचा ली थी। राज्यके पास न्याय माँगते हुए मैं निराश हुआ हूँ।' । राजाने उस व्यक्तिको शान्त किया। उसके बाद राजाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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