Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 44
________________ चारित्र्य-सुवास सभी सम्बन्धित व्यक्तियोंको उपस्थित होनेका आदेश दिया। न्यायाधीशोंने कहा कि महाराजा साहब ! न्याय सही है। राजाने मकान-मालिककी अंगूठीका हीरा उसके घर भिजवाकर घरबिक्रीसे सम्बन्धित सभी कागज-पत्र मँगवाये और मूल दस्तावेजके साथ मिलान करके देखा तो पता चला कि 'कुआँरहित मकान' की जगह 'कुआँसहित मकान' ऐसा दस्तावेजमें लिखा था, और बिक्री-दस्तावेज लिखनेके लिए राजलेखकको एक हज़ार दीनार दिये गये थे। तुरन्त ही राजलेखकको बुलवाया गया। उसने अपराधको स्वीकार किया। राजाने मकान बिकाऊ लेनेवाले नागरिकको उसी समय राज्य छोड़कर चले जानेकी आज्ञा दी और राजलेखकको रिश्वत लेनेके अपराधमें नियुक्त पदपरसे पाँच वर्षके लिए हटा दिया। न्याय माँगने आये व्यक्तिने राजाकी न्यायप्रियता, युक्ति और प्रजावात्सल्य देखकर अंतरसे राजाको आशीर्वाद दिये और योग्य न्याय मिलनेसे आपघातका विचार छोड़ दिया। सत्यकी विजय हुई। सर्वत्र - राजदरबारमें और नगरमें आनन्द फैल गया। २७ अनुकरण आद्य जगद्गुरु शंकराचार्यके सम्बन्धमें ऐसा कहा जाता हैं कि उनके शिष्य उनका अंध अनुकरण करते थे। एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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