Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 31
________________ चारित्र्य सुवास नाना फडनवीस विशेष कुछ कहें उससे पहले ही रामशास्त्रीने अपने भाईको दो रुपये दे दिये और भाई भी वह दक्षिणा लेकर चुपचाप चलता बना। ऐसे महान, निष्पक्ष और न्यायी पुरुषकी कीर्ति भारतके इतिहासमें अमर हो तो इसमें क्या आश्चर्य है ? १८ १५ ' धरोहर जल्दी वापस दे दे' बिरवरिया नामकी एक उच्च विचारवाली संत बाई थी । उसके पतिका नाम महात्मा रब्बी था । उनके दो बुद्धिशाली पुत्र थे। दुर्भाग्यवश सर्पदंशसे दोनों पुत्रोंकी एक-साथ मृत्यु हो गयी। उस समय महात्मा रब्बी घरपर नहीं थे । बाईको तत्क्षण दुःख हुआ, परन्तु संस्कारी होनेसे तात्त्विक विचार किया कि जो हुआ है उसमें परिवर्तन होनेवाला नहीं है। जन्ममरणका प्रवाह कोई रोक नहीं सकता। समय पूरा होनेपर सभीको चला जाना पड़ता है। परमात्माकी माया ही ऐसी है। * घरपर पतिके नहीं होनेसे लड़कोंके शव पासके बड़े कमरेमें रख छोड़े। जब अपने पति घर आये तब जैसे कुछ हुआ ही नहीं इसप्रकार प्रसन्न मुखसे वह सामने गयी और सम्मानपूर्वक पतिको बैठानेके बाद पूछने लगी, 'अपने यहाँ किसीकी धरोहर है तो उसे वापस दे दूँ ?" रब्बीने कहा, 'अभी जल्दी दे दे। इसमें समय बिताना योग्य नहीं है ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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