Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 34
________________ २१ चारित्र्य-सुवास श्री तर्कवाचस्पतिजीको यह शुभ समाचार देनेके लिए विद्यासागरजी स्वयं ही कलकत्तासे कुछ मील दूर उनके निवासस्थानपर गये। जब सारी वास्तविकता जाननेमें आयी तब तर्कवाचस्पतिजीने कहा, 'विद्यासागरजी, आप मनुष्यके रूपमें अवतरित एक महान देवता ही हैं।' १८ निरभिमानी सम्राट भारतमें हो गये महान सम्राटोंकी प्रथम पंक्तिमें महाराजा विक्रमादित्यका नाम प्रसिद्ध है। स्वयंके द्वारा किये गये अनेक परोपकार और लोककल्याणके कार्योंकी सदैव स्मृति रखनेक विचारसे महाराजाने एक विशाल कीर्तिस्तम्भ निर्माण करानेका संकल्प जिस रात्रिको किया था उसी रातकी यह बात है। ___ अपने नियमके अनुसार राजा वेश बदलकर नगर-निरीक्षण करनेके लिए निकले, ऐसेमें दो बड़े मदोन्मत्त साँड़ लड़ते-लड़ते उनके मार्गमें आये। उनसे बचनेके लिए राजा एक ब्राह्मणकी पुरानी गौशालाके खंभे पर चढ़ गये। वे साँड़ भी परस्पर लड़ते हुए उसी खंभे पर अपने सींग मारने लगे, इतनेमें ब्रा...ण जाग गया। ब्राह्मण, ज्योतिष-विद्याका जानकार था। रात्रिको आकाशमें मंगल और शुक्रके ग्रहोंको देखकर उसने ब्राह्मणीको जगाया और कहा, 'यह ग्रहयोग राजाके जीवनके लिए भयका संकेत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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