Book Title: Charitrya Suvas
Author(s): Babulal Siddhsen Jain
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
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चारित्र्य सुवास
१९
तब बाई, रब्बीको स्वस्थ चित्तसे कमरेमें ले गयी । पुत्रोंके शव परसे चादर हटाकर बोली, 'देख लो, भगवानने अपने यहाँ रखी हुई यह धरोहर !' रब्बी तो यह देखकर स्तब्ध हो गये । बाई बोली, 'खुदाने दिये और खुदाने लिये, इसमें अपनेको क्या ?"
अपनी स्त्रीका यह विवेक देखकर रब्बी प्रसन्न हुए ।
१६
तैरती उड़ती चटाइयाँ
हसन और राबिया दोनों मुस्लिम संत थे ।
नमाज़ पढ़नेका समय था । संत हसनको, स्वयंको प्राप्त सिद्धिके बलसे सबको आश्चर्यचकित कर देनेकी इच्छा हो आयी । इसलिए उसने अपनी चटाई पानीके ऊपर बिछायी और राबियासे कहा, 'चलो, हम इस चटाईपर बैठकर नमाज़ पढ़ लें ।"
संत राबिया विचक्षण थी। वह समझ गयी कि संतको सिद्धिका अभिमान हुआ है, परन्तु हसनको सीधा उत्तर देनेकी अपेक्षा उनकी भाषामें ही उत्तर देनेका उसने निर्णय किया। राबियाने अपनी नमाज पढनेकी चटाई हवामें उड़ा दी और हसनसे कहा, 'चलो, हम इस चटाईपर बैठकर नमाज़ पढ़ें, जिससे अपनेको कोई न देख सके ।'
संत हसनको अपनी भूलका ध्यान आ गया। उन्होंने राबियासे कहा कि मुझे माफ कर दो। तब राबियाने कहा,
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