Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 35
________________ २२ करता है, इसलिए हम शान्तिहवन करेंगे। ब्राह्मणी बोली, 'अपने राजाने अनेक बड़े दान किये परन्तु हमारी सातों कन्याओंके विवाहके लिए अबतक कुछ नहीं दिया, तो शान्तिकर्मके द्वारा राजाको संकटमुक्त करनेके लिए आप क्यों इतने अधिक तत्पर हुए जा रहे हैं ?" ब्राह्मणने उस समयके लिए बातको भुला दी। राजाने यह सर्व वृत्तान्त खंभेपर चढ़े चढ़े सुन लिया था । दूसरे दिन प्रातः राजाने उस ब्राह्मणको बुलाया और पर्याप्त धन देकर उसे कन्याविवाहकी चिन्तामेंसे मुक्त किया, एवं स्वयंको अभी बहुत-से लोकोपयोगी कार्य करने बाकी हैं, इसलिए कीर्तिस्तम्भके निर्माणमें प्रजाका धन व्यय करना उचित नहीं है, ऐसा विचारकर उस महाराजाने अपनी कीर्तिके लिए उत्पन्न अभिमानको सदाके लिए त्याग दिया । चारित्र्य सुवास १९ परमात्माके ध्यानमें एक समय खैयास नामक कोई महाशय अपने शिष्यके साथ वनमें चले जा रहे थे, ऐसेमें नमाज़ पढ़नेका समय हुआ । वे एक वृक्षके नीचे नमाज़ पढ़ने लगे। उस समय एक सिंहने पासमें आकर अचानक गर्जना की। सिंहकी गर्जनासे शिष्यके तो हाथ-पैर ढीले हो गये और वह घबराकर वृक्षपर चढ़ गया । खैयास तो खुदाकी बंदगीमें मग्न होनेसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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