Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 37
________________ २४ चारित्र्य-सुवास अलंकार एवं भूषणसामग्री दी और बड़ी डोलीमें बिठाकर उनका योग्य सन्मान करके वापस उनके घर भेजा। राजसेवकोंने रामशास्त्रीके घरका द्वार खटखटाया, परन्तु वह खुला और तुरन्त बन्द हो गया। राजसेवकोने कहा कि शास्त्रीजी, आपकी धर्मपत्नी आयीं हैं, परन्तु शास्त्रीजीने उन्हें बदले हुए रूपमें देखकर द्वार बन्द कर दिया था। उनकी पत्नी बात समझ गयीं। राजमहलमें वापस ले चलनेके लिए राजसेवकोंसे कहा। वहाँ जाकर वस्त्र, आभूषण आदि उतारकर अपने सादे कपड़े पहने और पैदल चलकर घर आर्थी तब घरका द्वार खुला ही था। शास्त्रीजीने उनका खूब प्रेमसे आदर किया। __ . शास्त्रीजीने कहा, 'ये मूल्यवान वस्त्र, आभूषण और शृंगारसाधन तो राजपुरुषोंको शोभा देते हैं, अथवा अपना अज्ञान छिपानेके लिए मूर्ख लोगोंको शोभा देते हैं। सौम्य और विवेकी पुरुषोंकी तो सादगी, संतोष और शीलरूपी वस्त्र ही सच्ची शोभा है। २१ रसास्वादका जय भारतके अर्वाचीन महापुरुषोंमें न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे एक प्रसिद्ध व्यक्ति हो गये हैं। एक दिन उनकी धर्मपत्नी रमाबाईने मालदा आम सुधारकर उन्हें खानेको दिया। दो-तीन फाँक खाकर उन्होंने कहा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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