Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra KobaPage 29
________________ १६ जो अपनी प्रशंसा सुनकर मनको शान्त रखता है और गालियोंसे अपमान होने पर भी समताभाव रखता है, ऐसा पुरुष ही आत्मविजयी बनकर निर्वाणको पा लेता है ।' तथागतका ऐसा उत्तर सुनकर ब्रह्मचारी सत्यमार्गको समझे और सम्यक् पथकी ओर मुड़ गये । १३ कलाकारकी उदारता इंग्लैन्डकी प्रसिद्ध कलासंस्था 'रॉयल अॅकेडमी' के व्यवस्थापकोंकी सभा हो रही थी । संस्थाके मुख्य हॉलमें एक बड़े चित्रप्रदर्शनका आयोजन किया गया था। देश-विदेशके अनेक कलाकारोंकी सुंदर कृतियाँ उस प्रदर्शनमें रखी जानी थीं । चित्रप्रदर्शनके लिए जितने स्थान थे, सभी भर गये थे । एक नये चित्रकारका भी एक सुन्दर चित्र आया था, परन्तु स्थानाभावके कारण उसे कहाँ रखना यह प्रश्न व्यवस्थापकोंके समक्ष खड़ा हुआ । चित्र सुन्दर और रखने योग्य है यह तो सभीने स्वीकार किया, परन्तु क्या किया जाय ? जगहका अभाव था । चारित्र्य सुवास - वहाँ पर प्रसिद्ध चित्रकार श्रीयुत टर्नर उपस्थित थे, क्योंकि वे भी व्यवस्थापकोंमेंसे एक थे । उन्होंने अपना एक चित्र निकाल दिया और उस नये चित्रकारका चित्र उस स्थान पर रख दिया। सबको आश्चर्य हुआ, तब श्रीयुत टर्नर बोले, 'नवोदित कलाकारोंको आगे लानेके लिए हम प्रौढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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